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Dr. Chanchal Chauhan

Inspirational Others

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Dr. Chanchal Chauhan

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विकृति से संस्कृति की ओर।

विकृति से संस्कृति की ओर।

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नारी तेरा क्यो होता जा रहा विकृत स्वरूप।

नारी तू तो थी दुर्गा, सीता, सावित्री, लक्ष्मी देवी स्वरूपा ।

पर लोभ माया लालच वैमनस्य के कारण ।

तू क्यों खोती जा रही अपना स्वरूपा ।।


यह थी दुर्गा जो अपनी देह लाज अस्तित्व बचाने के लिए दुष्टों का करती थी सर्वनाश

पर आज क्यों होती जा रही है विकृत नारी दुष्टों के आगे देह से कर देती नतमस्तक।।


एक थी सीता व सावित्री जो अपने पति परायण मर्यादा के लिए थी समर्पित।

आज है विकृत नारी जो अपनी विलासिता और भोग वैमनस्य के लिए खुद और पति को कर देती समर्पित ।।


एक थी लक्ष्मीबाई और दुर्गावती जो थी अपने देश और परिवार के लिये थी समर्पित तन और मन धन से ।

आज है विकृत नारी जो अपने देश और परिवार को कर देती समर्पित सिर्फ तन और धन के लिए ।।


है ऐसे हैं अनेकों उदाहरण जो कि नारी प्रेम, त्याग, तपस्या, अनुराग, विश्वास की थी देवी ।

वह आज घृणा, मोह, विलास, विराग का उदाहरण बनती जा रही है  ।।


क्यों होता जा रहा है यह विकृत रूप नारी का

क्यों होता जा रहा है यह विकृत रूप???


उसका कारण है पुरुष जो उदाहरण दिया करता था कभी त्याग, प्रेम, तपस्या का ।

वह आज अपनी कामुकता, मादकता, लोभ, लालच, छल, प्रपंच, दुराचार के कारण

कर देता विवश नारी को उसके निज स्वभाव से दूर ।।


उठ नारी अब बहुत हुआ त्याग कर ऐसा स्वरूप ।

नारी तू लाचार नहीं पुरुष के कारण है ऐसी छवि की ।

तुझे ना कभी लोभ हुआ लालच और अधर्म का और ना होगा ।

लोग उदाहरण देते थे और देते रहेंगे तू है गहना लज्जा मर्यादा और अलोभ और धर्म और संस्कृति का ।


तूने ही तो दिये इस धरती को राम, कृष्ण, गुरुनानक और कबीर

लाचार नहीं तू, तू बदलेगी तस्वीर इस विकृत स्वरूप की

खुद भी और दूसरों की भी

चलो चले अब विकृति से संस्कृति की ओर।।


इस कविता के माध्यम से मैं उन सभी माताओं और बहनों बेटियों से अनुरोध करना चाहूँगी कि तुच्छ मानसिकता और क्षणिक सुख और भोग विलास के लिये कुसंगति और कुमार्ग पर जाने से बचे।

देशहित आपके हाथों में है इसे सँवार दे। आपके विचारों का मुझे इंतजार रहेगा।



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