विकल्प
विकल्प
युग युगांतर से
स्त्री सहती आई है,
न जाने कब तक
यही सब सहना पड़ेगा।
तुम तलवार
क्यो नही उठा लेती हो?
क्यो छलनी नही कर देती
हर उस इंसान को,
जो छलनी करना चाहता है
तुम्हारी आबरू को।
रानी लक्ष्मीबाई
सिर्फ एक नाम,
बन के रह गया है;
शायद हमारे अंदर की
वो लक्ष्मी कहीं गुम हो गई है,
अब तो बची सिर्फ बाई है।
मत उम्मीद करो
इस समाज और कानून से,
उठा लो खंजर
और चीरती चलो सीना
हर अत्याचारी का
अब यही विकल्प बाकी रहा है
बस अंतिम विकल्प यही है।