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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

विजयादशमी

विजयादशमी

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नीरसता कर देते हैं दूर, नव उमंग का कर संचार।

संस्कृति का अभिन्न हैं अंश, हमारे प्यारे ये त्यौहार।।

मनाते चंद्र पंचांग संग, सौर पंचांग का करके विचार।

मनाते शस्त्र पूजा करके, विजयादशमी का ये त्यौहार।।


बहत्तर कोटि राक्षसी सेना का, आठ दिवस में किया संहार।

सवा लाख पौत्र पुत्र लाख मारे, सब लंका का किया उद्धार।।

स्वर्ण लंका अरि अनुज को दे, जननी जन्मभूमि से किया प्यार।

मर्यादा पुरुषोत्तम के उत्कृष्ट गुणों से, प्रभावित सदा रहे संसार।।


दशमी तिथि शुक्ल पक्ष की, माह आश्विन जो है क्वार।

शरद ऋतु का सुखद ये मौसम, तन मन में स्फूर्ति संचार।।

ऋतु संक्रमण का समय सुहाना, बदले ऋतु बदले आहार।

एक पक्ष तक करते व्रत हम, पाचन तंत्र में होवे सुधार।


वैज्ञानिक महत्व से हैं परिपूर्ण, आर्यों के सारे ही त्यौहार।

सामाजिक सरोकार से युक्त, समाहित किए हुए संस्कार।।

धर्म से जुड़े हुए हैं सब तर्क, तर्कसंगत है हर एक विचार।

न्यायपूर्वक अडिग रहें सत्पथ पर, सदा वृत्ति में हो सदाचार।।


नीति-अनीति सदा ही रही है, आदि -अंत का जब तक विस्तार।

सूर्य-सत्य आच्छादित कुछ पल, पर असत्य की होती ही है हार।।

कभी अधर्म हावी होता है और, कभी लगता है धर्म बड़ा लाचार।

धर्म की रक्षा और अधर्म नाशने , प्रभु लेते हैं धरती पर अवतार।


राम हों या फिर आदि भवानी, लक्ष्य है असुरों का समूल संहार।

अधर्म - अनीति हैं आसुरी शक्तियां, नीति - धर्म करते हैं उद्धार।।

सदा सत्पथ पर हम अडिग रहेंगे, हो प्रतिकूल भले सकल संसार।

धर्म-ध्वजा को कभी तजें ना, यही शिक्षा देते हैं सब ही त्यौहार।।


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