वीरों के गीत लिखूंगा
वीरों के गीत लिखूंगा
ना सत्ता, ना सिंहासन,
ना अमीरों के गीत लिखूंगा।
मैं जब भी कलम चलाऊंगा,
वीरों के गीत लिखूंगा।।
भीषण गर्मी, जाड़े में जो,
सरहद पर हैं डटे हुए।
राष्ट्र हित की चाहत में जो,
अपनों से हैं कटे हुए।
मैं तो ऐसे बलशाली,
धीरों के गीत लिखूंगा।
मैं जब भी कलम चलाऊँगा,
वीरों के गीत लिखूंगा।।
माँ मेरी ये भारत माँ,
वीरों की जननी है।
पर जयचंदों के कारण,
इसका
सीना छलनी है।
जो मार भगाएंगे दुश्मन को,
धूल चटाएंगे दुश्मन को।
उन शहतीरों के गीत लिखूंगा।
मैं जब भी कलम चलाऊँगा,
वीरों के गीत लिखूंगा।।
जब भी भारत माँ को,
कोई आँख दिखायेगा।
वो तब खुद को सीधा,
काल के घर पायेगा।
अश्त्र लिखूंगा, शस्त्र लिखूंगा,
बम, बंदूक, तलवारों की,
तकदीरों के गीत लिखूंगा।
मैं जब भी कलम चलाऊँगा,
वीरों के गीत लिखूंगा।।