विडम्बना
विडम्बना


क्या विडम्बना है
इच्छाएं पूर्ण नहीं होती कि
जिंदगी दूसरे छोर पर जा खड़ी होती है।
बचपन की अधूरी इच्छाएं
उम्र भर तड़पाती है
मां बाप को कोसते हैं
पैदा ही क्यों किया
अगर ढंग से पाल नहीं सकते थे
पढ़ा नहीं सकते थे
सुख सुविधा नहीं दे सकते थे।
हालात को कोसते हैं,
ईश्वर को भला बुरा कहते हैं।
जवानी की इच्छाएं पूरा करने के लिए
दिन रात एक कर देते हैं
अपनी इच्छाएं तो दरकिनार
बच्चों की फरमाइशें ही खत्म नहीं होती
अपनी इच्छाएं और
बच्चों की फरमाइशें पूरी करने में
न जाने कितने गलत या
सही काम कर देते हैं।
साधू, सन्त, मह
ात्मा
सभी इच्छाएं खत्म करने को कहते हैं
कहां खत्म होती हैं ये इच्छाएं
एक पूरी हुई, दूसरी तैयार है
हरदम मुंह बाएं खड़ी रहती हैं।
इन महात्माओं की भी
अपनी इच्छाएं कहां पूर्ण होती हैं
चाहे वे मुक्ति की ही क्यों न हों।
बुढ़ापे में भी कहां चैन है
इस उम्र की बहुत सी इच्छाएं
अपूर्ण रह जाती हैं
इस उम्र में सबसे बड़ी इच्छा होती है
स्वास्थ्य के ठीक रहने की।
अपनी गलतियों से खराब किया
स्वास्थ्य भला अब कहां ठीक होगा।
वैसे भी शरीर ने एक दिन
ढलकना ही होता है।
ठीक होने की कशमकश
चल ही रही होती है कि
मौत सिर पर आकर खड़ी हो जाती है।