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Uttam Agrahari

Abstract Classics Inspirational

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Uttam Agrahari

Abstract Classics Inspirational

विचलित मन

विचलित मन

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हे मन क्यूँ तू सोचे इतना,

  इतना दर्द है तुझमें क्यूँ।


ये जीवन आधारशिला है,

     इसमें दर्द तू घोटे क्यूँ।


खिटपिट - खिटपिट करके चलता,

     दर्द दुखों से मिलता क्यूँ।


जगते जगते चलता रहता,

      सोते स्वप्न है देता क्यूँ।


नही थकता तू चलता रहता,

      नहीं नियंत्रण तुझपर क्यूँ ।


सुख में तो तू जीवन देता,

      दुख में प्राण है लेता क्यूँ ।


नहिं तुझमें है साहस इतना,

    त्याग धर्म से डरता क्यूँ ।


तू भी विवश त्याग के आगे,

     त्याग धर्म से डरता क्यूँ ।


ना आये आसानी से वश में,

     कर्म पुरुष के वश में तू


हे मन क्यूँ तू सोचे इतना,

    इतना दर्द है तुझमें क्यूँ।


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