विचलित मन
विचलित मन
हे मन क्यूँ तू सोचे इतना,
इतना दर्द है तुझमें क्यूँ।
ये जीवन आधारशिला है,
इसमें दर्द तू घोटे क्यूँ।
खिटपिट - खिटपिट करके चलता,
दर्द दुखों से मिलता क्यूँ।
जगते जगते चलता रहता,
सोते स्वप्न है देता क्यूँ।
नही थकता तू चलता रहता,
नहीं नियंत्रण तुझपर क्यूँ ।
सुख में तो तू जीवन देता,
दुख में प्राण है लेता क्यूँ ।
नहिं तुझमें है साहस इतना,
त्याग धर्म से डरता क्यूँ ।
तू भी विवश त्याग के आगे,
त्याग धर्म से डरता क्यूँ ।
ना आये आसानी से वश में,
कर्म पुरुष के वश में तू
हे मन क्यूँ तू सोचे इतना,
इतना दर्द है तुझमें क्यूँ।