है प्रेम कहाँ है प्रेम कहाँ
है प्रेम कहाँ है प्रेम कहाँ
है प्रेम कहाँ है प्रेम कहाँ,
इस नीरसता का कारण क्या!
अपनों के दृष्टि में ,
फेरबदल का कारण क्या !
यह क्या होते सुंदर विचार ,
यह क्या होते हैं मित्र भाव!
इस मित्रता की कूटनीति,
के पीछे स्वार्थ का कारण क्या!
यूँ जानबूझकर लुट जाना,
लुटकर के भी वो मुसकाना!
वो सम्मान दांव पर लग जाना,
और खुद में खुद का घुट जाना!
उन अपमानों की बारिश से,
वो दिल का भय से घबराना!
आसान नहीं होता ये सब,
फिर भी सब कुछ सह जाना!
इस कूटनीति की उपलब्धि से,
जो पाया तुमने पाया,
पर आज हारकर भी मैंने,
अपने शुद्ध हृदय को जितलाया!