श्री हनुमत शरणम्
श्री हनुमत शरणम्
प्रभु तुम सर्व समर्थ हो, नहिं तुम सम् कोऊं अनुकूल।
दास निहारें आपको प्रभु कृपा करो भरपूर।।
तन सिन्दूर चर्चित भयो, हे रामादल परम विशेष।
इस तन तनिक बिलोकिये, सेवक करे निहोर।।
तेरी सेवा मम् अनुकूल है, नहिं रख्यो अन्य विचार।
प्रभु आपहिं तारनहार हो, नहिं कोऊं आप समान।।
आपहिं मे स्थित भयो, मेरो तन मन और गुरुर।
आपहिं जब चेतन दिख्यो, मै भूल गयो यह शरीर।।
जब ध्यान प्रभु तुममें लगा तो जाग गया बैराग्य।
राम नाम हृदय बसा, और हुआ सत्य साकार।।
जब मझधार में फँस गयो, तो कियो तुमहारो ध्यान।
ये डूबन भी प्यारा लगै, जब सुमिरौं पवनकुमार।।
तेरा दास मैं जनम जनम रहयो, तुम जानत मन माहिं।
अपना दास सम्भारिकै, लीजो चरण बसाय।