विचार
विचार
कुछ यूं उलझ कर रह गया मन, अविचल विचार में
झपक भी न सकी पलक ये, इंतजार-ए-करार में
जर्रा जर्रा वक़्त का यूं, दे रहा था ज़ख्म दिल को
छिड़ चुकी थी जंग जैसे, परस्पर इख्तियार में
गुफ़्तगू थी जारी दिल की, ख़ामोशियों से रात भर
क्यों ख्वाहिशें हासिल न हुई, ख्वाब के बाजार में
मशक्कत में कुछ कमी है या, ये मुद्दत का खेल है
तड़प रहा है जो दिल मेरा, मंजिल के ही दीदार में
जतन न मेरे होंगे कम, अब ख्वाब पूरा होने तक
मुश्किलात हो भले ही, कितनी भी लंबी कतार में
हौसले चरम पर है, और मंज़िल मेरी निगाहों में
खलबली भी उठ चली, अब मेरे रक्त के संचार में
बदल दूंगा मुकद्दर को, भरोसा जो करूं खुद पर
फतह में छुपा है जो मजा, मसर्रत कहां वो हार में
बांधे सेहरा जीत का, अब लौटूंगा जल्द ही मैं
फरामोश बन चुका हूं अब, मैं जीत के एतबार में
