वह दुःस्वप्न
वह दुःस्वप्न
तू जो अपने प्राण पण से
कर्म में संलग्न है,
तो ये दुःख कुछ भी नहीं
ये बस एक दुःस्वप्न है,
टूटे जो तंद्रा तो पायेगा
ये जीवन भी मात्र एक स्वप्न है
तू क्यों अपने प्राप्य हेतु
परम से कृतघ्न है
आते जाते दृश्य पर क्यों
इस तरह विषण्ण है
जो है तेरे वश में मात्र
वो तेरा प्रयत्न है