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Garima Chourey

Others

5.0  

Garima Chourey

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धरा के स्वप्न

धरा के स्वप्न

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ये मेघ वीर , 

बूँदों के शरों का,

किये धरा पर संधान,

क्लांत धरा में बिखरे बीजों से,

करते प्रस्फुटन का आव्हान!


कभी निशा इठलाती कहीं पर,

विद्युत का करके श्रृंगार!

कहीं उषा का आँचल बनकर,

मेघों का चहुँ दिश विस्तार!


सूने पड़े सृष्टि के हृदय में,

फूटा कल कल स्पंदन!

बन नवांकुर , ये तने हुए हैं,

धरा के पल्लवित मृदु स्वप्न!

               


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