वह चित्रकार
वह चित्रकार
ओ मानव मन के चित्रकार......
मेरी ख्वाहिशों को भरके अपने रंग में.....
मेरे हौसलों को दे आकार......
तेरे श्वेत श्वेत कागजों पर......
मन के भावों को दूँ उकार...
भर दे सारी खुशियों को अपने सतरंग में....
क्योंकि तू है आकारिक कलाकार....
मैं कारीगर हूंँ.. कलम की......
तराशती रहती शब्दों को विचारों की.....
अपनी कल्पनाओं से तेरे ज्वलित अस्तित्व का करूंँ वंदन....
पत्थर से निस्पंद देहों.. का करूंँ स्पंदन....
लेखनी मेरी करें नृत्य ..जब हो तेरे वर्णों का ज्ञान गायन....
ओ मानव मन के.. निरंकार चित्रकार..
जो तुम समझो... वो मैं हूंँ शब्द..
तुम समझ से परे ....मैं हूँ नि:शब्द..