वह बड़ी दूर तक
वह बड़ी दूर तक
वो बड़ी दूर तक साथ आती रही,
मेरी मैय्यत पे आंसू बहाती रही।
दूर करके सिंदूर बिंदिया को वो,
अश्को से मुझे ही सजाती रही।
सांसे टूटी मगर लक्ष्य छूटा नहीं,
बाद मेरे वो सरहद पे जाती रही।
सांस सांस में लक्ष्य नए धारकर,
दुश्मनों की हस्ती मिटाती रही।
माथे माटी से चंदन लगाने लगी,
मातृभूमि के यश को बढ़ाती रही।
वो बड़ी दूर तक साथ आती रही,
मेरी मैय्यत पे आंसू बहाती रही।
दूर करके सिंदूर बिंदिया को वो,
अश्कों से मुझे ही सजाती रही।।