ऊॅंची-ऊॅंची इमारतें
ऊॅंची-ऊॅंची इमारतें
बड़ी-बड़ी ऊॅंची-ऊॅंची...
इन इमारतों की दुनिया है बड़ी,
कांक्रीट के जंगल जैसी ये बड़ी इमारतेंं,
फैल रही हैं हर शहर-नगर में।
सर उठा कर ऊपर से नीचे देखो या,
नीचे से ऊपर... लगते सब जैसे खिलौने....
नाम पता, ज्ञात न होता पड़ोसी का,
भावनाएं भी जुड़ नहीं पातीं किसी से,
सब अपने में ही रहते मगन...
न किसी के सुख में साथ,
न किसी के दुःख में मिलते।
इन बड़ी इमारतों में रहने वालों की
बातें भी होती हैं बड़ी बड़ी..
रुपया पैसा गहना कपड़ा,
होता बहुत है इनके पास,
पर दिल न होता धनी...
ऊॅंची-ऊॅंची इमारतों में रहने वालेे,
हो जाते हैं इमारतों जैसे.. सख्त!