विकास
विकास
अपनी ताकत दिखाने को
हो रहा देशों का क्षरण देखो,
मानवता छूट गई पीछे,
पत्थर के हो रहे सभी।
आज जो समृद्ध है,
कर रहा मन-मानी वही,
बनाने शक्तिशाली स्वयं को,
कर रहा युद्ध की तैयारी।
हो रहा घमासान चारों ओर,
कैसा ये विकास है,
आयुधों की ताकत दिखा,
हो रहा कैसा नर संहार है।
आज धरा हो रही हताहत,
मानव के अपराध से,
है लहूलुहान सभी जन वहां
संवेदनाओं की हत्या से।
हो रहा विकास के नाम पर
मौत का जो तांडव है,
अंत नहीं उसका कुछ भी
हर हद पार वो कर रहा।
करना हो विकास अगर,
तो मानवता का करें,
समझें दर्द दूसरे का,
उसको भी अपना सा समझें।
अगर नहीं संभले जल्दी ही,
तो होगा सर्वनाश ही,
विकास नहीं होगा,
होगा विनाश ही।
है काल ये संहार का,
एटम के प्रहार का,
रोक ले तू ऐ मानव,
समय नहीं दुष्कार्य का।
