स्त्री
स्त्री
मैं!!! एक स्त्री
मेरे अन्तर्मन में हैं कई सवाल?
मुझे डराकर और धमका कर
क्यों रखा गया सालों साल??
क्या, मेरी ये कमजोरी है,
कि, अंग मेरे कोमल हैं??
पर यही कोमल अंग मेरे,
करतें हैं, नव-जीवन का निर्माण।
पर!! अब नहीं हूॅं मैं कमज़ोर,
जानती है ये दुनिया भी।
वीरांगना हूॅं मैं देश की,
करती हूॅं रक्षा सीमा पर।
चिकित्सक हूॅं, मैं दुनिया की,
कर रही डटकर सामना महामारी का।
वैज्ञानिक भी हूॅं मैं,
बना रही जीवन रक्षक।
कलाकार भी मैं हूॅं,
कर रही हर जगह अपना नाम रोशन।
फैला रही उजियारा अपने गुणों से।
मैं ही हूॅं अहिल्या,
मैं ही हूॅं रानी मणिकर्णिका,
मैं ही हूॅं दुर्गावती,
मैं ही हूॅं रज़िया सुल्तान,
पर केवल इतिहास में ही नहीं,
वर्तमान में भी हैं मेरे कई नाम।
कल्पना चावला, अरूणिमा, बेछेन्द्री पाल
साइना,मैरी कॉम और अब मीरा भी हैं
बहुत महान...
नामों की संख्या नहीं,
कामों को पहचानो।
संभल जाओ, नर राक्षस देश के,
पहचानो अपनी करनी,
ना करो तुम नादानी।
मेरे हाथों ही लिखी हुई है,
तेरी अन्तिम कहानी।
