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Yashodhara Yadav 'yasho'

Abstract Tragedy

3.3  

Yashodhara Yadav 'yasho'

Abstract Tragedy

उत्तर पूछा

उत्तर पूछा

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कलुषित जीवन विलग हुआ क्यों,

शश्य धरा की चितवन से।

मैं नित उतर पूछ रही हूं,

अपने दिल की धड़कन से।।


जीवों का उच्छवास घुट रहा,

वसुधा का श्रृंगार लुट रहा।

ग्लोबल वार्मिंग बन फैलाए,

नित सुरसा सा बढ़ता जाए।

क्यों चहुं ओर कुहासा फैला,

जो जीवन कर रहा कसैला।

यह कैसी आतंकी छाया,

मैंने इसका उत्तर पूछ।

जो नित श्वास लोक को देता,

उसी वृक्ष की तड़पन से।


 मैं नित उत्तर पूछ रही हूं,

अपने दिल की धड़कन से।।


जनसंख्या का रोग बढ़ रहा,

 तापमान हर रोज चढ़ रहा।

 कालकूट सा विष फैलाए,

 वायु प्रदूषण बढ़ता जाए।

 क्यों लुट रहा प्रकृति का यौवन,

 देखो सीमित हैं संसाधन।

मानव बस्ती कहां बसाए

मैंने इसका उत्तर पूछ।

प्रदूषण से त्रस्त धरा के,

आह निकलते कड़ -कड़ से।


मैं नित उत्तर पूछ रही हूं,

अपने दिल की धड़कन से।


गरज गए बरसे ना बादल,

मरुभूमि बना वसुधा का आंचल,

 छलकी जाती विषम वेदना,

सोई पर्यावरण चेतना।

शुद्ध हवा जल वास कहां,

 प्यासा है घट कूप यहां।

 प्यास बुझे कैसे मानव की,

मैंने इसका उत्तर पूछ,

हिमगिरि के शिखरों से आते,

इठलाते काले घन से।।


मैं नित उत्तर पूछ रही हूं,

अपने दिल की धड़कन से।।



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