जगत की जिंदगानी हूं ।
जगत की जिंदगानी हूं ।


रचा है डूबकर जिसको,
खुदा की वह कहानी हूं।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं।
किसी ने मां कहा मुझको,
कभी बहना बुलाया है।
कभी साथी कभी सहचर,
कभी हमदम बनाया है।
अनेकों रूप में बिखरी,
विरासत में समर्पण की।
तेरी आंगन को महकाती,
तेरी बिटिया सयानी हूं।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं........
दिया बलिदान निज सुत का,
वतन की लाज राखी है।
वो पन्ना धाय मैं ही हूं,
लिखा इतिहास साखी है।
उठी हूंकार कर जब मैं,
तो शक्ति रूप में आई।
मैं दुर्गा रूप गायत्री,
बनी झांसी की रानी हूं।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं.....
दिखाया रूप ममता का,
बनी में मात अनुसुइया ।
जहां पर झूलते झूला,
जगत सृष्टि के रचैया ।
पिलाया दूध ईश्वर को,
यशोदा ,देवकी बन कर।
कभी राधा कभी रुक्मणि
कभी मीरा दिवानी हूं।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं......
उषा की धूप बन खिलती,
चांदनी बन विहंसती हूं।
जगत आंगन की तुलसी बन,
सभी संताप हरती हूं।
बनी जब क्रांति की बाला,
समय की गति बदल डाली।
झुके यमराज भी मुझसे,
सती शक्ति की सानी हूं।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं.....
मैं मां के गर्भ में आई,
तो मारा जांच कर मुझको ।
जो जीवन दे दिया तो भी,
जलाया आग में मुझको।
काट दो सोच के बंधन,
तोड़ दो भेद के ताले।
पिता माता मैं तेरा रूप हूं,
तेरी निशानी हूं।।
न अबला हूं न बेचारी,
जगत की जिंदगानी हूं.....!