मेरी बिटिया मेरा बचपन
मेरी बिटिया मेरा बचपन
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।
हंसता गाता मौज मनाता,
लोरी सुनता बचपन।
उस निश्चल चितवन में कब थी,
भेदभाव की काया।
गली मोहल्ले घूमा करते,
बने प्यार हमसाया ।
खेल खेल में रूठ मनाना,
हंसी ठिठोली बचपन।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।
बागों में तितलियां पकड़ना,
भैया के संग लड़ना।
एक चीज की जिद लेकर फिर,
रोना और मचलना।
चंदा मामा की गुड़िया सा,
अचरज वाला बचपन।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।।
सावन बाग सखि हमझोली,
कोमल गीत रुपहला।
नीम निमौरी के गहनों संग,
झूला था जब झूला ।
किलकारी में घुला मिला,
दादी नानी का बचपन।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन ।
तीज दशहरे के मेले में,
नव उल्लास भरा था।
घोड़े वाले झूले ने भी
मन को खूब छला था ।
मोटर गाड़ी खेल खिलौना ,
गुड़िया वाला बचपन ।।
उसको देख याद फिरआया,
उसको मेरा बचपन ।।
मां की मथनी के माखन को,
रख रोटी पर खाना।
मोटी पड़ी मलाई उसको ,
चुपके चट कर जाना ।
लड्डू खीर कचौड़ी वाला,
रसगुल्ला सा बचपन ।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।।
रक्षाबंधन की राखी पर,
सबसे पैसे लेना ।
दिवाली के धूम पटाखों ,
मैं फिरता मृगछौना।
होली हुल्लड़ धूम मचाता
फाग बसंती बचपन ।।
उसको देख याद फिर आया,
उसको मेरा बचपन ।।
पके हुए अमरूद बाग के ,
रोज तोड़कर खाना ।
मां की डांट पड़ें भैया पर,
उसका नाम बताना ।
खरबूजा सा रंग बदलता,
सोंधा भीना बचपन ।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।।
वह मेरी गोदी का गहना,
मीठा रूप सलोना ।
,बाल रूप धर ईश्वर बैठा,
आंगन डाल बिछोना ।
आंगन की तुलसी विरवा सा,
मनमाता बचपन ।।
उसको देख याद फिर आया,
मुझको मेरा बचपन।।