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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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उसका वजूद

उसका वजूद

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एक गर्माया हुआ तथ्य है 

उसका वजूद मेरी ज़िंदगी में 

नहीं होते हुए भी मेरे आस-पास 

बहती है 

एक सुलगती नदी पुरानी.!


उसके अहसासों की 

उस नदी से उठती चिंगारी में 

अपने सारे सपने पकाती हूँ

जाते जाते भी वो ठहर गया है.!


मेरी मुस्कान के मोड़ पर 

खिलखिलाता गुनगुनाता 

मेरी कड़क कोफ़ी की खुशबू में 

शक्कर की मिठास सा.!


मेरी सुनहरी त्वचा की नर्मी में 

चमकता दहेकता मेरी कल्पनाओं में 

मेरी चद्दर की सिलवटों से उठती 

आहों में शीत स्पंदन सा.!


हाँ वो जाते-जाते ठहर गया है

वो अंधेरी रात में चाँद सा रोशन है

मेरे रोम-रोम में रचा बसा 

क्यूँकि

कुछ प्यार वास्तव में 

ताउम्र के लिये होता है।


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