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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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उसका आना

उसका आना

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उसका आना

उसके होने का

एहसास सा होता है

और जब भी वो आता है

हवा आईना बन जाती है

दिखने लगता है हमारा चेहरा

झुरझुराती हुई हवा में

घुलने लग जाते हैं उसमें शब्द

और ये हमेशा दिलचस्प होता है

अपना चेहरा,अपने से अजनवी

दिखने लगता है

चमकने और कड़कने लगती हैं

बिजलियां आकाश में

इन नये अनदिखे दृश्यों के लिये

शब्द वही पुराने होते हैं

पर इन्हें ठीक ठीक समझने के लिए

डूबना पड़ता है शब्दों में

शब्द शरीर भर नहीं होते

इनके अंदर से भाव निकलते हैं

और निकल निकलकर

डिप्लॉय होने लगते हैं

विचारों के झुंड में।

प्रेम ही था हमारा होने में

और ये एहसास

नया प्रेम सा लगने लगता है।


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