STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

4  

Neerja Sharma

Abstract

उमड़-घुमड़ बादल

उमड़-घुमड़ बादल

1 min
486


मन के उमड़ते भावों की तरह

उमड़ घुमड़ बादल 

सीमाहीन क्षितिज तक

हर रोज निहारूँ 

हर रोज विचारूँ

कितने रूप बदल कर आते 

हर रूप मन को लुभाते ।

आज फिर मेरी बादल से मुलाकात हो गई 

पेड़ो के ओट से ढलते सूरज की लालिमा लिए ....

पूछा मैने," कैसे हो दादा?"

वह मुस्कुरा या ,'ठीक हूँ।'

फिर बोला ,' हाल तो लोगों का पूछना है ,।

तुम से तो रोज मुलाकात होती है,

रोज तुम्हे देखता हूँ 

प्रकृति को निहारते रिझाते 

सोचा आज बात कर ही लूँ बहना।"

मैने कहा ,'आज कल आप बड़े सुंदर व स्वच्छ विचरण कर रहे हो ?'

उसने कहा ,'हाँ !आजकल मानव घर में हैं

गाड़िया - स्कूटर सब बंद,

प्रदूषण बिल्कुल ही कम।

अब मुृझे धुएँ से परेशान हो 

आँखें नहीं मलनी पड़ती ।

दम घुटने पर गरजना नहीं पड़ता ।'

'हाँ यह तो सच है ',मैने कहा।

बहुत खिलवाड़ किया था प्रकृति के साथ

शातिर दिमाग ,नई नई चालें ।'

मैं हैरान ,कितना सच कहा बादल ने ।

तभी तेज हवा चली 

लगा किसी ने सिर पर हाथ रखा

मानो आशीर्वाद दिया हो ।

मैने जल्दी से ऊपर देखा 

बादल सिर के ऊपर से गुजर रहा था।

वहीं बैठ मैं यह नज़ारा निहारती रही..

नयनाभिराम....

देखती रही उमड़-घुमड़ बादलों को

उन्मुक्त पंछी से 

आसमान में विचरण करते।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract