उधम सिंह (सवैया छंद में)
उधम सिंह (सवैया छंद में)
(1)
ऊधम के सम वीर धरा पर,
देखि सुनी बहुतै कम भाई।
जो प्रण हेतु तज्यौ सुख साधन,
जा पहुँचा अरि के घर धाई।
डायर को वह मारन चाहत,
सो निज हीय लिए गंठियाई।
डायर कायर बोलत है सब,
जो नर नारि पे गोलि चलाई।
(2)
बीसन साल बित्यो पर डायर,
नाहिं उसे कहिं देख न पाया।
बीतत जात न आवत हाथहिं,
सो मन ही मन वो घबराया।
को विधि वा यमलोक पठावहुँ,
सोचत खोजत वादिन आया।
हाथ लियौ पिसतौल दनादन,
देखत डायर गोलि चलाया।
(3)
डायर को यमलोक पठाकर,
आपनु कौल निभाइ बखूबी।
एक नया इतिहास बनाकर,
आपनु प्राण तज्यौ तु बख़ूबी।
भूल न पावत यो घटना जब,
देश हिते बलि दान बखूबी।
जो न अज़ाद कभी पहिचानत,
ऊधम की अब जानत खूबी।
