उड़ान उसकी
उड़ान उसकी
आज पहचान ले खुद को, तू ही तो सृजन कर्ता है।
तेरे ही प्यारे कदमों से तो, ये संसार भी चलता है।।
कदम बढ़ा कर तू छू सकती, नील गगन के तारों को।
पंख तेरे इतने शक्तिशाली, स्वप्न कर सकते साकार जो।।
तोड़ जरा पांवों के बंधन, पहचान ले अपनी शक्ति को।
देवी रूप में तुझे जहां पूजता, रमता तेरी ही भक्ति को।।
स्वछंद पंछी तू वसुधा की, तू ही जीवन की पहचान है।
तुझ्से ही नव सृजन होता, तूझसे होता सब कल्याण है।।
न हारना तू कभी स्वयं से, न घबराना कभी कुरीतियों से।
तुझे बनाना जहां ये अपना, अपनी वैचारिक नीतियों से।।
ले हुंकार अब, तोड़ सब बंधन, जो तुझे कभी जकड़ते थे।
लगा तिलक स्वतंत्रता का अब, तुखसे ही जीवन सजते थे।।
पुनः जाग, पहचान स्वयं को, तू स्वयं में ही सशक्त सम्पूर्ण है।
तेरी स्वछंद उड़ान से ही, बनता ये अपूर्ण ब्रह्मांड, पूर्ण पूर्ण है।।
