तूफान हो गया-ग़ज़ल
तूफान हो गया-ग़ज़ल
दुनिया के रंग ढंग पे हैरान हो गया
ग़म ए ज़िन्दगी के मारे परेशान हो गया
रोज़ी की रोज़ फ़िक्र में फिरता कहाँ कहाँ
अपने ही घर में यूँ लगे मेहमान हो गया
जीने की जद्दोज़हद में यूँ लूट मार है
इंसा चला था बनने मैं शैतान हो गया
तूने भी क्या ये कह दिया अपने बयान में
इक-हवा जो उठ रहा था वो तूफ़ान हो गया
रिश्तों में चाशनी रहे क़ायम, मेरा मिजाज़
सब जानते हुए 'अभि’ अंजान हो गया