तूझे किस तरह चाहूँ
तूझे किस तरह चाहूँ


मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बन जाऊँ?
जो बात बनूँ तो बिगड़ जाऊँ
जो भेद बनूँ तो खुल जाऊँ
जो साथ बनूँ तो छूट जाऊँ
जो हवा बनूँ तो छू जाऊँ
जो प्यास बनूँ तो बुझ जाऊँ
जो राख बनूँ तो उड़ जाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बन जाऊँ?
जो दिन बनूँ तो तप जाऊँ
जो शाम बनूँ तो ढल जाऊँ
जो रात बनूँ तो कट जाऊँ
जो रस्ता बनूँ तो मुड़ जाऊँ
जो सफर बनूँ तो बढ़ जाऊँ
जो मंज़िल बनूँ तो रुक जाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बन जाऊँ?
जो सुरंग बनूँ तो खो जाऊँ
जो रेत बनूँ तो फिसल जाऊँ
जो काजल बनूँ तो फैल जाऊँ
जो पत्थर बनूँ पूजा जाऊँ
जो रंग बनूँ तो बट जाऊँ
जो इन्सान बनूँ तो भूखा सो जाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बन जाऊँ?
जो धर्म बनूँ तो भड़क जाऊँ
जो जात बनूँ तो दब जाऊँ
जो आवाज़ बनूँ तो मि
ट जाऊँ
जो अख़बार बनूँ तो बिक जाऊँ
जो लेख बनूँ तो झुकजाऊँ
जो ख़बर बनूँ तो हट जाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बन जाऊँ?
जो जगह बनूँ तो भर जाऊँ
जो मैदान बनूँ तो खाली रह जाऊँ
जो मकान बनूँ तो ढह जाऊँ
जो सागर बनूँ तो अंत ना पाऊँ
जो जंगल बनूँ तो कट जाऊँ
जो नदी बनूँ तो सूख जाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बनजाऊँ?
जो आदमी बनूँ तो अकड़ जाऊँ
जो औरत बनूँ तो सह जाऊँ
जो मासूम बनूँ तो बच ना पाऊँ
मैं तूझे किस तरह चाहूँ?
तेरे इश्क़ में क्या बनजाऊँ?
सुनो,
मैं तुम्हें, इस तरह चाहूँ कि,
एक कविता हो जाऊँ, जो बार बार
गाया जाऊँ
एक हिस्सा हो जाऊँ, जो हर एक
में बट जाऊँ
एक किस्सा हो जाऊँ, जो वर्षों तक
सुनाया जाऊँ
मैं तुम्हें इस तरह चाहूँ