तू ही मेरा उत्कर्ष
तू ही मेरा उत्कर्ष
हुई प्रिय की दीवानी मैं तो भूल गई जग सारा,
हुई प्रीति जबसे तू ही मुझे लागे अति प्यारा !
व्याकुल रहे तन मन मैं जब तक न देखूँ प्रियतम,
चितचोर बन गए तुम बने और हृदय अभिराम !
मंगल मूरत को पाकर मंगल-मय हुआ ये जीवन,
तुम ही मेरे मनमीत प्रियवर तुमसे ही लागी लगन !
बिन तेरे इस जग में नहीं आनंद ना कोई हर्ष ,
बिन भरतार के अधूरी मैं तू ही जीवन उत्कर्ष।