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Govardhan Bisen 'Gokul'

Abstract

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Govardhan Bisen 'Gokul'

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तुरसी

तुरसी

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जालंधर    दैत्य    संग

देव    करसेती     युद्ध।

वृंदा पत्नी आय ओकी

पतिवर्ता   अना   शुद्ध ।।१।।


रुप    जालंधर    लेय

विष्णू जासे ओको घर।

पतिवर्ता    होसे   नष्ट

मर    जासे   जालंधर ।।२।।


देसे  श्राप विष्णूजीला

होय  जाय  तू पाषाण।

देख   विष्णूला  पत्थर

सृष्टि  भयी  या बेजान ।।३।।


देव   गया    वृंदापास

ओला  करीन  बिनती।

कर   विष्णू  श्रापमुक्त

वृंदा  चली  गयी  सती ।।४।।


ओको  राखमालं  वहां

झाड़    वापेव    बरसी।

शालीग्राम विष्णू ओको

नाव     ठेवसे    तुरसी ।।५।।


बिना    तुरसी   प्रसाद

नही    करुन     ग्रहण।

होये  तोरो  संग  बिह्या

विष्णू    देसे    वरदान।।६।।


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