तुरपन
तुरपन
याद आती है माँ की हिदायतें
सिलाई सिखाते समय
वो अक्सर दिया करती थीं
"तुरपन इतनी महिन करना
दूसरी ओर न निशान छोड़ना
जितनी बारीक तुरपन होगी
उतनी ही तारीफ होगी ,"
हम ग़लतियाँ करते रहे
वो बार बार टोकती रहीं
सुई चुभती एक टीस उठती,पर
धागा दूसरी ओर दिखता ही रहा ।
अब ज़िंदगी के पन्ने पलट देखते हैं
तो सोचते हैं माँ तुम्हारी कसौटी पर
तब तुरपन सही थी या नहीं
पर अब महीन धागों से
बारीक तुरपन कर लबों को सी रखा है
दूसरों को दिखता नहीं अब कोई भी धागा
कुशलता से रिश्तों को बाँध रखा है
सहेजने मे रिश्ते टीस उठती है
कुछ दिल में चुभती है
इस सहेजने और बाँधने में
तुरपन टूटने का डर रहता है
पर माँ बहुत मेहनत से
आपने तुरपन सिखाई थी
उसका मान रखना है
न माँ ...