तुम्हारे साथ
तुम्हारे साथ
कितने साल गुजर गए तुम्हारे साथ यूंही चलते हुए
गर मुझे फिर मिलना है तुमसे,
एक अजनबी की ही तरह
किसी दिन रास्ते पर चलते हुए फिर टकराना है
गर एक अनजान मुसाफिर की तरह
तुमसे ढेर सारी बातें बतानी है,
गर आमने सामने नही लेकिन चिट्ठियां भेजकर
मुझे फिर तुम्हारे ख्यालों में गुम होना है,
अर्धागिनी बनके नही गर एक प्रेमिका बनकर
तेरे इश्क के रंग में फिर से रंग जाना है
इस जनम ही नहीं गर आने वाले हर जनम के लिए।

