काश! मैं तुम्हे इस तरह मिलती
काश! मैं तुम्हे इस तरह मिलती
"काश" मैं तुम्हे भी इस तरह मिलती.........,
हाथ में पकड़ी नॉवेल को संभालते हुए मेरे लाल दुपट्टे को ठीक करती ,
कहीं से हवा का तेज जोका आता और दुपट्टा साथ ले जाता।
मे भागती हुई मन में बुदबुदाती..... हाय राम ये कहां जा रहा है मुझे छोड़कर.....,,
फिर , कुछ आगे जाकर रुक सी जाती ।
दुपट्टा ठहेराता एक अजनबी चहेरे पर जाकर।
कुछ हलचल हुई तो धीरे से उसने हटाया लाल दुपट्टा अपने चहेरे से ।
देखकर चहेरा उसका शर्मा सी गई कुछ मे भी यूंही।
धीरे धीरे चलके वो मेरे सामने आकर दुपट्टा हाथ में देकर जाते हुए बोला.....
संभालकर !! मैं दुपट्टा लौटा रहा हूं ,"दिल नही"।
मैं खड़ी बस उसकी बात मे उलझी रही और वो मेरी आंखों से ओझल हो गया
हाययय........"काश" मैं तुम्हे भी इस तरह मिलती.....!!!

