तुम
तुम
पूछा था एक रोज़ तुमने मुझसे,
कि मैं क्या हूं तुम्हारे लिए,
और मेरे पास कोई जवाब नहीं था।
आज जब तुम चली गई हो,
तो ये जवाब मिला मुझे अपने दिल से।
कि मेरी एकलौती लाहासिल ख़्वाहिश हो तुम,
नसीब के खिलाफ की हुई आज़माइश हो तुम।
मेरे लिए वो खुदा हो तुम जो कभी रूबरू नहीं होता,
मेरे इस नाकामयाब से प्यार की
एक कामयाब - सी नुमाइश हो तुम।
अंधेरे में इस दिल को रोशन करने वाली
चांदनी रात हो तुम,
लबों तक जो कभी ना आ सकी
दिल में दबी हुई वो बात हो तुम।
लड़ता रहा होकर सब के खिलाफ
वो हालात हो तुम,
और एक नज़र में आंखों से उतरकर
दिल में बसने वाले जज़्बात हो तुम।
मेरी इस नासाज़ तबीयत का मर्ज़ हो तुम,
जिंदगी भर खुशी से निभाऊंगा
वह फर्ज़ हो तुम।
कुछ सांसे उधार मांगी थी मैंने
ज़िंदगी से जीने के लिए,
उन्ही उधार मांगी हुई सांसों का
कर्ज़ हो तुम।
मेरी खामोशी की आवाज़ हो तुम,
मैं सरगम और साज़ हो तुम।
रखता हूं छुपाकर दुनिया से
तुम्हें सीने में अपने,
मेरी जिंदगी का सबसे गहरा
राज़ हो तुम।
मैं नमाज़ी और आयत हो तुम,
ख़ुदा ने मुझ पर बख्शी
वो इनायत हो तुम।
लिखता है ख़ुदा भी इतना बेहतरीन
ये मालूम नहीं था,
उसकी लिखी हुई सबसे खूबसूरत
रुबायत हो तुम।
मेरी इन रूठी हुई आंखों का ख़्वाब हो तुम,
इस उदास से चेहरे पर
खुशी का नकाब हो तुम,
एक तुम ही हो मेरी मुस्कुराहट की वजह,
और तुम्हारे पूछे हुए हर सवाल का
जवाब हो तुम !