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अच्युतं केशवं

Romance

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अच्युतं केशवं

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तुम यथार्थ की नगरी के बाशिंदे

तुम यथार्थ की नगरी के बाशिंदे

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तुम यथार्थ की नगरी के बाशिंदे हो।

पर मैं रहता हूँ सपनों के ग्राम में।

-

जो मेरा विश्वास तुम्हारी लाचारी।

मेरी एक कल्पना सौ सच पर भारी।

दुनियादारी तुम्हें मुबारक रमे रहो,

पर मैं तो रमता बस अपने राम में।

तुम यथार्थ की………………….

-

हाँ तुमने ही खोजे हैं तट सागर के।

मैं तो साथ रहा हूँ घट के गागर के।

प्यास तुम्हारी चिरसंगी सागरजेता,

तुष्टि सहचरी मेरी आठौ याम में।

तुम यथार्थ की…………………..

-

तुम जुटे रहे उलझे धागे सुलझाने में।

मैं मस्त नाचती तकली ताने-बाने में।

सुलझाते-सुलझाते तुम ही उलझ गये,

मैं नाँचू ओढ़ चुनरिया धरती धाम में।

तुम यथार्थ की……………………..



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