तुम सा नहीं देखा
तुम सा नहीं देखा
सब देखा , मगर तुम सा नही देखा ..
एक जगह पर खड़े हो कर ,
पूरी 'कायनात' को , घूमता नही देखा ..
किसी के बस 'चेहरे' के ही नूर से ,
कभी चरागों को बुझता नही देखा ..
जी करता है तुम्हे देख कर मैं सुधर जाऊ ,
'खयाल' कभी इतनी दूर का नही देखा ..
जो खूबसूरत लगे उस पल में भी ,
’नाक’ पर ऐसा गुस्सा नही देखा ..
किस तरह से तरसते है तुम्हे देखने के लिए ,
ऐसा हाल पेहले कभी खुद का नही देखा ..
जो उम्र है मेरी , उस हिसाब से ,
सब देखा , मगर तुम सा नही देखा ...