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Praveen Kumar

Thriller

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Praveen Kumar

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तुम रणचंडी हो

तुम रणचंडी हो

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तुम रणचंडी हो, राण का बस एक हुंकार दो ।

आज कोई रावण ने तुम से बच पाये, आज पाप का संघार हो !!


तुमने तिल तिल जी लिया, बर्दर्शत कर लिया, सह लिया बहुत ।

आज दूध की अमृत को भी विषाप्त कर , रूह पिशाचों का प्रतिकार कर !! 


तुम मर्यादा हो, मर्यादित हो, कब तक अपने ही आप से बाधित हो !

आज तोड़ दो लाज के हर बंधन, तुम काली बन कर आज शिव को भी हुंकार दो !!


तुम पोषण हो, पोषित हो, आज कुपोषित भी तुम हो।

इस जिझक को तार दो, तुम गंगा बन प्रवाह से जल- धल सब नाप दो !! 


तुम घर की लाज हो, अपनो की आवाज़ हो, तुम शिव की पूरक अनिका हो ,

तुम आज तुलसी दल नहीं, कमल नहीं

तुम सीता बन तिनके की एक विश्वास

शत्रु को अपने होने का शंखनाद दो ।।


ममता, प्रेम , दया, छमा, करुणा, आज सब बेकार है।

उस अहसास की चिता को तुम आज आग दो,

कि उनकी लपटों में तुम्हे पूर्णता का आभास हो,

तुम रणचंडी हो, रण का बस एक हुंकार दो ।



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