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Praveen Kumar

Others

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Praveen Kumar

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कोई आज फ़ना करदे

कोई आज फ़ना करदे

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कोई आज फ़ना कर दे इस जिस्म को रूह से, 

कब से बेताब है ये नदी सागर से मिलने को।


मेरा मौला भी आज मेरा खुदा न बन पाया

शायद मेरी इबादत में उसका नाम न आ पाया।


आज खामोश मैं हूँ खामोश तुम भी हो, 

आज खामोशियो के आगे सन्नाटे भी खामोश हैं।


एक आहत क्या हो यूँ लगा बर्फ की वफ़ा पिघल गई,

आस की वफ़ा कितनी दूर जाएगी, बेवफाई के आग से पिघल जाएगी ।



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