आज नाप दो, ये पाप की धरती
आज नाप दो, ये पाप की धरती
आज नाप दो, ये पाप की धरती
वामन के दो डग से।
हुंकार भर लो श्रीकृष्ण का ऐसा,
कि शत्रु भी कापे थर-थर डर से।
तांडव कुछ ऐसा करो
भोले शिव का,
कपाल पे मल लो
भस्म शत्रु का अपने हट से !
आज पीरो दे विजय माला
माँ काली की शत्रु मुंड से,
कि शत्रु मांगे प्राणों की
भीख माँ के पग में !
आज गांडीव पर चढ़ा दो
प्रत्यंचा धर्म समर की,
आज राण हो विजय की,
विनाश हो, प्रतिकार हो,
दुश्मनों के शिकार हो,
मधुसूदन के शुदर्शन से
रणभूमि रंगरंजीत लाल हो !
ये धरती जो तरस रही है,
तड़प रही है, पाप में घुट रही है,
तुम आज बन जाओ
भगीरथ उस गंगा के,
जो तर दे इस वसुधा को !
आज नाप दो,
ये पाप की धरती वामन के दो डग से।
