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Praveen Kumar

Abstract

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Praveen Kumar

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आज नाप दो, ये पाप की धरती

आज नाप दो, ये पाप की धरती

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आज नाप दो, ये पाप की धरती

वामन के दो डग से।

हुंकार भर लो श्रीकृष्ण का ऐसा,

कि शत्रु भी कापे थर-थर डर से।


तांडव कुछ ऐसा करो

भोले शिव का,

कपाल पे मल लो

भस्म शत्रु का अपने हट से !


आज पीरो दे विजय माला

माँ काली की शत्रु मुंड से,

कि शत्रु मांगे प्राणों की

भीख माँ के पग में ! 


आज गांडीव पर चढ़ा दो

प्रत्यंचा धर्म समर की,

आज राण हो विजय की,

विनाश हो, प्रतिकार हो, 


दुश्मनों के शिकार हो,

मधुसूदन के शुदर्शन से

रणभूमि रंगरंजीत लाल हो !


ये धरती जो तरस रही है,

तड़प रही है, पाप में घुट रही है,

तुम आज बन जाओ

भगीरथ उस गंगा के,


जो तर दे इस वसुधा को !

आज नाप दो,

ये पाप की धरती वामन के दो डग से।


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