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Praveen Kumar

Abstract

5.0  

Praveen Kumar

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मेरी गहराइयों को नाप ले

मेरी गहराइयों को नाप ले

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मेरी गहराइयों को नाप ले, ऐसी छलांग नहीं बानी,

मेरी उचाँइयों को छू ऐसी उड़ान नहीं बानी !


मैं तो समुंद्र की गहराइयों में अपने सपने देखता हूँ

कोई मुझे मेरे निडर नींद से उठा दे, ऐसी आहट नहीं बानी ! 


रोज़ाना अपने आप को तोलता हूँ इंसानों के बाजार में ख़ुद को बेचता हूँ, 

पर मेरे ईमान को कोई खरीद पाये, ऐसी दुकान नहीं बानी ! 


मैं भी हँसता हूँ ,रोता हूँ, लड़ता हूँ,रोज़ डरता भी हूँ,

पर कोई मेरे इन भावनाओं को सुकून दे, ऐसी शशि की चांदी रात नहीं बनी ! 


सोचता हूँ सब कुछ बेच दूँ, अपना ये ज़िस्म, अपनी ये रूह, अपनी ये यादें, 

पर मेरे आप को कोई समेट ले, ऐसी ममता की छांव दोबारा नहीं बानी !


मेरी गहराइयों को नाप ले, ऐसी छलांग नहीं बानी !


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