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Dev Sharma

Inspirational

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Dev Sharma

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तुम पूरी विचार धारा थे

तुम पूरी विचार धारा थे

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शिथिल था भले शरीर वो उनका,

पर मन शिथिल न कभी हो पाया था।

नंगा था भले बदन वो उनका,

पर भूल से न शस्त्र कभी उठाया था।।


कमर पे धोती हाथ की लाठी पहचान थी,

बूढ़ी आंखों पे ऐनक कसी कद काठी थी।

मुख पे खूब घनी थी झुर्रियां छाई भले ही,

शस्त्र नाम पे केवल हाथ में पकड़ी लाठी थी।।


देख मदमस्त हाथी वाली चाल उनकी,

खुद आंधी भी शर्म से लज्जाति थी।

सुन कर आहट गांधी के कदमों की,

अंगेजों के पाँव तले जमीन खिसक जाती थी।।


मुख से निकली हर बात लकीर होती थी,

हाथ में नित तकली घूमा करती थी।

मसीहा बन कर उभरे थे गरीबों का वो,

उनकी प्रतिज्ञा भनक से भी अंग्रेजी सत्ता डरती थी।।


वो खुद अपने मन के थे बेताज बादशाह,

बस सत्य अहिंसा की सम्भाली टेक थी।

वीरता का व्रत था संग धारण किया हुआ,

और प्रतिज्ञा आजाद वतन की नेक थी।।


सब भारतीयों में ललक आजादी की पैदा की,

कीमत समझाई खुद के मन मीत होने की।

चिर निद्रित सो रहे थे जो अपनी आँखें बंद किये,

उन्हें कीमत समझाई उठ कर आँखे धोने की।।


तुम केवल एक शरीर नही थे धरा पे,

स्वयं में भरी पूरी एक विचार धारा थे।

तुम नायक थे आजादी के परवानों के,

तुम डूबते की नैया के एक सहारा थे।।


तुम्हारे उपकार का बदला दें तो कैसे दें,

बस तुम्हारे सजदे में सर ही झुका पाएँगे।

तेरे दिए सत्य अहिंसा पथ का अनुसरण करते,

वैष्ण जन तो तेनही कहिए पीर पराई जाने रे

यही गीत गुनगुना पाएँगे।।

         



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