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VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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तुम कुछ नहीं कर सकते !

तुम कुछ नहीं कर सकते !

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तुम कुछ नहीं कर सकते !

जैसी एक रूहानी आवज़ा अचानक 


मेरे कानों में गूंजती है और 

मुझे कुछ पल के लिए 

सुन्न कर जाती है,


मैं हतप्रभ होकर अपने 

बंद आँखों से इधर-उधर देखता हूँ 

बिस्तर से उठता हूँ 


टेबल पर रखे

पानी से भरे जग को उठाता हूँ 


पानी पीता हूँ 

और सो जाता हूँ 

ये भूलकर की कल क्या होगा ?


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