तुम कहीं कुछ तो हो..
तुम कहीं कुछ तो हो..
माना..
नहीं हो "यथार्थ" तुम
पर,
"सच" होते हुए यथार्थ में
कहीं तो हो..हो न !!
माना..
नहीं हो प्रेम तुम ,
पर,
अंतस के एहसास में
कहीं तो हो..हो न !!
माना..
स्वतंत्र हो..हर संबंध से
पर,
खत्म होते हुए संबंधों में
"कुछ" तो हो..हो न !!

