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Asha Jaisinghani

Abstract

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Asha Jaisinghani

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तुम जबरदस्ती अपनी अक्ल मुझको मत बांटो

तुम जबरदस्ती अपनी अक्ल मुझको मत बांटो

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तुम जबरदस्ती अपनी अक्ल मुझको मत बांटो

हर चेहरे की तरह हर सख्शियत होती है जुदा जुदा

हो सकता है जहाँ पर तुम खत्म होते हो

वहाँ से मै शुरू होती होऊँ।

जो बातें होगीँ तुम्हारी नज़र में नसीहत हो सकता है,

वो मुझे पकाने वाली लगती हो

तुम जियो अपने हिस्से की जिन्दगी

अपनी तरह-मुझे जीने दो अपनी जिन्दगी

अपनी तरह।

जब हर तरफ दम घुटने लगे

तब दुनिया की दुनिदारी जाए भाड़ में

मै पंछी हूँ अपने गगन का

मेरे गगन में

मुझे उड़ने दो तुम,

क्यूँ जिद है तुम्हारी

तुम जैसा ही होऊँ

गर मैं जिद करूँ ,

तुम मेरे जैसे ही हो जाओ,

क्या होगा तब

(हसतें हुए)अगल-बगल,

ऊपर-नीचे, सब झांकने लगोगे तुम

होंगे हम तुम्हारी नज़रों में मूर्ख

सयानो को हमने देखा है अक्सर कुढ़ते हुए

कह गए हैं कुछ मूर्ख

दिल तो बच्चा है

कर लो जी भर के नाँदानियाँ तुम

माना कि ज्ञान बहती गंगा है ,

उसमें हाथ धो लेने चाहिए

पर, तुम बाँध हो

मुझको मत बाँधों

मुझको नहीं बांधना

मुझको नहीं बांधना ।


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