तुम हकीकत हो या ख़्वाब
तुम हकीकत हो या ख़्वाब
सपने पर पाँव पड़ा है मेरा या
हकिकत में तुम यहीं कहीं हो
गुज़रा है कोई मेरे करीब से
एक एहसास महसूस हो रहा है
जैसे बहती हवाओं में इत्र मिला है
हरदम वो सुगंधित साया साथ चले
जिस्म की सुधबुध नहीं
बस एक ही लय पर साँसे चले
यकीनन तुम ही चाहत हो
सराबोर मेरी
उस राह पर मृगजल तो नहीं
हसीन तुम्हारा साया है
सिरहाने सपने खड़े है
उन्मादीत यंत्रवत सी मैं डूबती
मनुहार मेरा खूब ललचाए
तू बहुत करीब नज़र आए
झील की सतह पर चाँद को देखा है
एक मूरत सी बसती है जो मन में
वही चाँद में पाई है
आँखें मूँदे करवट बदलूँ
यूँ महसूस होता है जैसे
सेज पर फूलों की पंखुड़ि बिछाई है
सीने पर चोली के तले
छोटे से तील ने तूफ़ान उठाया है
धड़कन की तान पर
मन से उठते नग्मों ने ताल मिलाया है
उखड़ी हुई साँसों की कसम
तुम्हारी आसपास की मौजूदगी ने
दिल में हलचल मचाई है।
मेरी खेलती तमन्नाओं के
तुम वारिसदार हो,
या जन्मों जन्म की
मैं तुम्हारी चाहत की कर्ज़दार,
आख़िर क्यूँ लुभाती है
तुम्हारी मौजूदगी।
