STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Abstract

4  

Bhavna Thaker

Abstract

तुम हकीकत हो या ख़्वाब

तुम हकीकत हो या ख़्वाब

1 min
499

सपने पर पाँव पड़ा है मेरा या

हकिकत में तुम यहीं कहीं हो


गुज़रा है कोई मेरे करीब से

एक एहसास महसूस हो रहा है 

जैसे बहती हवाओं में इत्र मिला है

हरदम वो सुगंधित साया साथ चले

जिस्म की सुधबुध नहीं 

बस एक ही लय पर साँसे चले


यकीनन तुम ही चाहत हो 

सराबोर मेरी

उस राह पर मृगजल तो नहीं 

हसीन तुम्हारा साया है

सिरहाने सपने खड़े है 

उन्मादीत यंत्रवत सी मैं डूबती 

मनुहार मेरा खूब ललचाए 

तू बहुत करीब नज़र आए


झील की सतह पर चाँद को देखा है 

एक मूरत सी बसती है जो मन में 

वही चाँद में पाई है

आँखें मूँदे करवट बदलूँ 

यूँ महसूस होता है जैसे 

सेज पर फूलों की पंखुड़ि बिछाई है


सीने पर चोली के तले 

छोटे से तील ने तूफ़ान उठाया है 

धड़कन की तान पर 

मन से उठते नग्मों ने ताल मिलाया है


उखड़ी हुई साँसों की कसम 

तुम्हारी आसपास की मौजूदगी ने 

दिल में हलचल मचाई है।


मेरी खेलती तमन्नाओं के

तुम वारिसदार हो,

या जन्मों जन्म की

मैं तुम्हारी चाहत की कर्ज़दार,


आख़िर क्यूँ लुभाती है

तुम्हारी मौजूदगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract