तुम बीत रहे हो
तुम बीत रहे हो
जिंदगी में हर पल
जो बीत रहा है वह
कुछ ना कुछ कहता है
तुम कितना सुनते हो
यह तुम पर निर्भर करता है
जो जिया है तुमने
उसे खोते देखा भी है तुमने
जो था सामने उसको जलते देखा है
जो आने वाला है वह भी आज न कल
मुंह दिखला कर खो जाने वाला है
तो फिर क्यों ना तुम, पल को..
पल में, पल भर, सुकून से जियो
जो हो तुम, वह बनकर जियो..
मिट्टी का तन है उसे मिट्टी समझो
जो तय किया है दूर से तुमने,
अपने जीवन का वह सफ़र..
उसको जरा तुम नजदीक से देखो !
जिस वक्त में तुम हर वक्त
धधक कर खुद को खोते जा रहे हो
उस वक्त से कुछ तपकर निकलो
जो पसरी है ख़ामोशी, उदासी आसपास
उसकी तुम वाणी बनकर उभरो !!
