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Hemant Kumar Saxena

Abstract

3  

Hemant Kumar Saxena

Abstract

तुझे लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं

तुझे लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं

1 min
364


आ जिंदगी जिने की बजह बता दे मुझे, 

अगर हूँ खुद्दार मैं तो सजा़ दे मुझे ,


जीने के पहलूओं को सिखा दे मुझे, 

अपनी भी तस्वीर दिखा दे मुझे, 


तू लगती थी सरल मगर सहजा नहीं, 

तुझे लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं, 


राह आसान दिखा मुझे उलझा दिया तूने,

जीने की आदी पहेली को सुलझा दिया तूने,


महफूज़ है जमाना मेरी उन्नति को देखकर, 

जीना जिसे कहते हैं सिखा दिया तूने, 


तू लगती थी सरल मगर सहजा नहीं, 

तुझे लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं, 


चाहे तो तकदीर बदल देती है तू, 

हर एक मिनट में तस्वीर बदल लेती है तू, 


कभी कहती है मुझे छूना नहीं आँसमा को, 

चाहे तो सूरज को भी निगल लेती है तू, 


तू लगती थी सरल मगर सहजा नहीं, 

तुझे लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं।


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