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Mahavir Uttranchali

Romance

5.0  

Mahavir Uttranchali

Romance

टूटा हुआ दर्पण

टूटा हुआ दर्पण

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एक टीस-सी

उभर आती है

जब अतीत की पगडंडियों

से गुजरते हुए

यादों की राख़ कुरेदता हूँ ।


तब अहसास होने लगता है

कितना स्वार्थी था मेरा अहम?

जो साहित्यक लोक में खोया

न महसूस कर सका

तेरे हृदय की गहराई

तेरा वह मुझसे आंतरिक लगाव


मैं तो मात्र तुम्हें

रचनाओं की प्रेयसी

समझता रहा

परन्तु तुम किसी

प्रकाशक की भांति

मुझ रचनाकार को पूर्णत:

पाना चाहती थी


आह! कितना दु:खांत था

वह विदा पूर्व तुम्हारा रुदन


कैसे कह दी थी

तुमने अनकही सच्चाई

किन्तु व्यर्थ

सामाजिक रीतियों में लिपटी

तुम हो गई थी पराई


आज भी तेरी वही यादें

मेरे हृदय का प्रतिबिम्ब हैं

जिनके भीतर मैं निरंतर

टूटी हुई रचनाओं के दर्पण

जोड़ता हूँ ।


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