ठोकरों की सरकार
ठोकरों की सरकार
हर साल बदलते कैलेंडर से,
नेताजी बदलते रहते है।
चुनाव से पहले उगते हैं,
चुनाव बाद ढलते रहते है।
कभी जवानों पर पथराव किया,
कभी हाथों में हल लिया।
हम मेहनत करने वालों को,
इनसे बचकर रहना है।
नही तो पता चला कि,
बची हुई जिंदगी को,
इनकी कुर्सी की भूख
ने निगल लिया।
चुनाव से पहले,
विपक्षी दलों के नेताओं पर,
अपराध सारे मढ़वा देते हैं,
गाली गलौज, कुछ नहीं,
गोलियां तक चलवा देते हैं,
चुनाव खत्म होते ही,
कुर्सी की खातिर,
इन आरोपों को
सिरे से भुला दिया।
ठोकर मार
जनता के वोटों को
गठबंधन की सरकार
बना लिया।
