ठंडी हवा
ठंडी हवा
ठंडी हवा
मचलकर न चल
आबो हवा
कहीं चुरा न ले जिया।
बैचेन निगाहें
मौसम में देखती दरख्तों को
मन कह उठता
बहारें भी जवान होती।
वे सजती सँवरती
दुल्हन की तरह
झड़ते पत्ते गिर कर
आ जाते मेरे पास
प्रेम-पत्र की तरह।
प्रेम-गीत गुनगुनाने
जाने क्यों
धड़कन बढ़ जाती
जब-जब मौसम से
बहारें आती।
लगता मुझे
मौसम से प्यार हुआ।।

