तृतीय नवरात्रि-मांँ चंँद्रघंटा
तृतीय नवरात्रि-मांँ चंँद्रघंटा
शारदीय नवरात्रि तृतीय दिवस है माता चंद्रघंटा का दिन पावन।
कल्याणकारी मांँ चंद्रघंटा सुख शांति समृद्धि से भर देती जीवन।।
आतंक महिषासुर नामक असुर का, चिरकाल में बढ़ गया था।
तीनों लोक में मचाकर हाहाकार,आधिपत्य ज़माना चाहता था।।
ईश्वरीय वरदान से दिनप्रतिदिन महिषासुर हो रहा था शक्तिशाली।
भयभीत थे देवता चिंतित इंद्र नरेश स्वर्ग पर विपदा है आने वाली।।
ब्रह्मा जी समीप पहुंँचे सभी देवता सहायता करो अब देव हमारी।
बोले ब्रह्मा जी आसान नहीं कार्य शिवजी ही करेंगे मदद तुम्हारी।।
कैलाश पहुँचे सभी देवता, लेकर सहमति भगवान नारायण की।
व्यथा सुन क्रोधित हुए भगवान शिव ब्रह्मा जी संग नारायण भी।।
त्रिदेवों की उस क्रोधाग्नि से तब उत्पन्न हुआ था एक तीव्र प्रकाश।
उसी ऊर्जा से उनकी प्रकट हुई देवी गूंज उठा जल थल आकाश।।
नारायण से सुदर्शन चक्र मिला देवी को शिवजी का मिला त्रिशूल।
अस्त्र-शस्त्र और इंद्र से पाकर घंटा उनको मिला चंँद्रघंटा स्वरूप।।
लेकर त्रिदेवों से अनुमति, मांँ चंँद्रघंटा ने महिषासुर को ललकारा।
भीषण युद्ध हुआ तब माता के प्रहार से महिषासुर बच ना पाया।।
पापी असुर महिषासुर का, अंत किया माता ने घंटे की टंकार से।
तीनों लोगों की रक्षा की मुक्ति दिलाई महिषासुर के अत्याचार से।।
धरती गगन आकाश तीनो लोक में गूंजने लगा माँ का जयकारा।
हर लेती दुःख सारे मांँ चंँद्रघंटा जिसने भी भक्ति भाव से पुकारा।।
तेरी भक्ति में राम जाएं मांँ, स्वीकार कर कोटि-कोटि नमन हमारा।
सुख समृद्धि शांति सब तुझसे मांँ, तेरे चरणों में हम तू ही सहारा।।