त्रिविक्रम
त्रिविक्रम
कहने को कुछ भी ना आये,
गिनती उसकी न हो पाए।
शून्य कहो या कहो सिफ़र तुम,
अंदर अपने जगत समाये।
पानी की एक बूँद को देखो,
नाखून को भी भिगो ना पाये।
फिर भी कम न आंका जाए।
बूँद बूँद मिल सागर आये।
छोटी सी चिंगारी भी पल
भर में शोला बन जाए।
किसी के क़ाबू में न आये,
जंगल को यूँ खाक बनाये।
छोटे से एक बीज को देखो,
अपने अंदर वृक्ष छिपाये।
खुद चुप बैठा हो एक फल में,
फलों का एक भंडार दबाये।
कभी कभी ज़िन्दगी के मसलों
के होते हैं सरल उपाय।
कभी कभी बौना से वामन,
बलि पे भी भारी पड़ जाए।
दुनिया में हर एक के होती
अपनी किस्मत अपनी राय।
उसी एक के अंदर बंद है
कल अनेक की संभावनाएं।